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|रचनाकार=मीराबाई
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राग झंझोटी
 <poem>मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥<br>जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।<br>तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई॥<br>छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई॥<br>संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई॥<br>चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई। <br>मोती मूंगे उतार बनमाला पोई॥<br>अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।<br>अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई॥<br>दूधकी मथनियां बड़े प्रेमसे बिलोई।<br>माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई॥<br>भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।<br>दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही॥<br/poem><br> 
शब्दार्थ :- कानि =मर्यादा, लोकलाज। अंसुवन जल = अश्रुरूपी जल से।
आणद =आनन्दमय। फल =परिणाम। राजी =खुश। रोई =दुखी हुई।
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