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पहली अनुभूति : गीत नहीं गाता हूँ
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बेनकाब बेनक़ाब चेहरे हैं, <br> दाग दाग़ बड़े गहरे हैं <br>
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ <br>
गीत नहीं गाता हूँ <br>
गीत नहीं गाता हूँ <br>
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पीठ मे छुरी सा चाँद चांद <br>राहु राहू गया रेखा फांद <br>
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ <br>
गीत नहीं जाता हूँ <br>
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दूसरी अनुभूति : गीत नया गाता हूँ
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हार नहीं मानूँगा, <br>
रार नई ठानुगाठानूँगा, <br>
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ <br>
गीत नया गाता हूँ <br>
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