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|रचनाकार=रति सक्सेना
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भले घर की लडकियाँ
भले घर की लडकियाँ<br><br>पतंगें नहीं उडाया करतींपतंगों में रंग होते हैंरंगों में इच्छाएँ होती हैँइच्छाएँ डँस जाती हैँ
पतंगें नहीं उडाया करतीं<br>पतंगों में रंग होते हैं<br>रंगों में इच्छाएँ पतंगे कागजी होती हैँ<br>इच्छाएँ डँस कागज फट जाते हैँदेह अपवित्र बन जाती हैँ<br><br>है
पतंगे कागजी पतंगों में डोर होती हैँ<br>हैकागज फट जाते हैँ<br>देह अपवित्र बन डोर छुट जाती है<br><br>राह भटका देती है
पतंगों में डोर मे उडान होती है<br>डोर छुट जाती बादलोँ से टकराहट होती है<br>राह भटका नसें तडका देती है<br><br>हैं
पतंगों मे उडान होती है<br>बादलोँ से टकराहट होती है<br>नसें तडका देती हैं<br><br> तभी तो<br>भले घर की लड़कियाँ<br>
पतंगे नहीं उड़ाया करतीं
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