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जड़े जानती हैं / रति सक्सेना

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|रचनाकार=रति सक्सेना
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जड़े जानती हैं कि<br>वजूद उनका ही है<br>जिनके हिस्से में<br>रोशनी है<br>रोशनी उनकी है जो<br>बिना किसी परवाह<br>पी रहे हैं गटागट<br>धूप और छाँह<br>उंगलियों के रेशे रेशे से<br>मिट्टी को थामे<br>सोचती रह जाती है वह<br>पीठ पर चढ़े<br>तने के बारे में<br>कोटर के बारे में<br>पखेरुओं के बारे में<br>अंधमुंदी आँखों से देखती है<br>टहनियों को, उन पर लदी पत्तियों को<br>तभी<br>कैंचुऍ गुदगुदाने लागाते हैं<br>सँपोले कुदकियाँ भर<br>घेर लेते हैँ<br>किस्से सुनाने लगाती हैँ चींटियाँ<br>लम्बी यात्राओं के बारे में<br>इक्कट्ठे हो जाते हैं वे तमाम<br>जिनके हिस्से में बस अँधेरा है<br>जड़े जान जातीं हैं<br>सबसे बड़ा सुख<br>
रोशनी नहीं है
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