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|रचनाकार=रति सक्सेना
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अलमारी के कोने में
अधसीला सी कार्डबोर्ड का डिब्बा
भरा पड़ा है
टाफियों के रंगीन पन्नों, क्रियोन,
चाक के टुकड़ों, कुछ मोती कुछ लड़ियाँ
टूटे पेन, भोंडी पैंसिलों के साथ
बेकार हो गए रबड़
न जाने क्या अगड़म-झगड़म से
अलमारी के कोने में<br>खोल लिया था मैंनेअधसीला सी कार्डबोर्ड जानते हुए भी डिब्बे का डिब्बा<br>इतिहासभरा पड़ा है<br>बस फिर क्याटाफियों के रंगीन पन्नों, क्रियोन,<br>उड़ने लगे प्रेत फर-फरचाक के टुकड़ोंबादल बने वे, कुछ मोती कुछ लड़ियाँ<br>फिर चिड़ियाँटूटे पेन, भोंडी पैंसिलों के साथ<br>बेकार हो फिर बिला गए रबड़<br>अनन्त मेंन जाने क्या अगड़म-झगड़म से<br><br>छोड़ते कुछ निशान
खोल लिया था मैंने<br>मेरी मुट्ठी मेंजानते हुए भी डिब्बे का इतिहास<br>फोन पर बिटिया ने भर्राए गले से कहाबस फिर क्या<br>अटा पड़ा है आसमान बादलों सेउड़ने लगे प्रेत फर-फर<br>बादल बने वेपर बरस नहीं रहा है, फिर चिड़ियाँ<br>फिर बिला गए अनन्त में<br>माँछोड़ते कुछ निशान<br><br>रो लो तो जी तुम्हारा हल्का हो जाए
मेरी मुट्ठी में<br>फोन पर बिटिया ने भर्राए गले से कहा<br>अटा पड़ा है आसमान बादलों से<br>पर बरस नहीं रहा है, माँ<br>रो लो तो जी तुम्हारा हल्का हो जाए<br><br> प्रेतों ने उधर भी निशान छोड़ दिए होंगे<br/poem>