भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रसोई की पनाह / रति सक्सेना

18 bytes added, 13:03, 29 अगस्त 2013
|रचनाकार=रति सक्सेना
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
जब भी मेरा आसमान
 
मेरी हथेली में भिंच
 
चिपचिपाने लगता है
 
मेरा आसपास
 
अनजाना बन मंडराने लगता है
 
मैं भागती हूँ
 
रसोई की पनाह में
 
कट-कट कटती जाती हैं
 
लौकी, गाजर, भिंडियाँ
 
बिना किसी शिकायत के
 
फिर चढ़ जाती हैं आग पर
 
मेरी ऐवज
 
मैं फिर से तैयार हो जाती हूँ
 
परोसी जाने के लिए
</poem>