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"आख़िरी" / रति सक्सेना

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|रचनाकार = रति सक्सेना
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"आख़िरी"
 
इस शब्द से मुझे
 
बेहद डर लगने लगा है
 
आख़िरी इच्छा, आखिरी क्षण
 
आख़िरी मुलाकात
 
मुझे शिकायत नहीं
 
कि कोई नहीं मिला बरसों से
 
क्यों कि सहूलियत है मुझे कि
 
वह ज़िन्दा है, और रहता है
 
दुनिया के किसी कोने में
 
मुझे हमेशा आशा रहती है , कि
 
वह सामने आ जाएगा
 
बिना बताए, फिर मुस्कुरा कर हाथ पकड़ लेगा
 
हो सकता है कि गले लगा ले
 
लेकिन यह मुलाक़ात आखिरी हुई तो
 गले की नस , कोयल की तरह 
कुहुक उठेगी, फिर
 
पिंजरा खोल फुर्र
 
फिर क्या ख़ून की धार में
 
ज़िन्दगी से लिखा
 
"आख़िरी"
 
शब्द ही धुल जाएगा?
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