|रचनाकार=राही मासूम रज़ा
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जिनसे हम छूट गये अब वो जहाँ कैसे हैं
शाखे गुल कैसे हैं खुश्बू के मकाँ कैसे हैं ।।
ऐ सबा तू तो उधर से ही गुज़रती होगी
उस गली में मेरे पैरों के निशाँ कैसे हैं ।।
जिनसे हम छूट गये अब वो जहां कैसे हैं<br>कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूलशाखे गुल कैसे हैं खुश्बू आके देखो मेरी यादों के मकां जहां कैसे हैं ।।<br><br>
ऐ सबा तू मैं तो उधर से ही गुज़रती होगी<br>पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक कियाआज उस गली शहर में मेरे पैरों शीशे के निशां मकाँ कैसे हैं ।।<br><br>
कहीं शबनम के शगूफ़े कहीं अंगारों के फूल<br>आके देखो मेरी यादों के जहां कैसे हैं ।।<br><br> मैं तो पत्थर था मुझे फेंक दिया ठीक किया<br>आज उस शहर में शीशे के मकां कैसे हैं ।।<br><br> जिनसे हम छूट गये अब वो जहां जहाँ कैसे हैं ।।</poem>