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|रचनाकार=कैफ़ी आज़मी
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{{KKVID|v=aUDx2_HfJkEtPmxZKd8SmM}}{{KKCatGhazal}}<poem>खार-ओ-खस तो उठें, रास्ता तो चले<br>मैं अगर थक गया, काफ़ला तो चले<br><br>
चांद, सूरज, बुजुर्गों के नक्श-ए-क़दम<br>खैर बुझने दो उनको हवा तो चले<br><br>
हाकिम-ए-शहर, यह भी कोई शहर है<br>मस्जिदें बंद हैं, मैकदा तो चले<br><br>
उसको मज़हब कहो या सिआसत कहो!<br>खुद्कुशी का हुनर तुम सिखा तो चले<br><br>
इतनी लाशें मैं कैसे उठा पाउँगा<br>आप ईंटों की हुरमत बचा तो चले<br><br>
बेल्चे लाओ, खोलो ज़मीन की तहें<br>मैं कहाँ दफ़न हूँ, कुछ पता तो चले<br><br/poem>