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|रचनाकार=क़तील शिफ़ाई
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[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}{{KKVID|v=-ivCh6utUQELByhM_35Z8Y}}<poem>रक़्स करने का मिला हुक्म जो दरियाओं मेंहमने ख़ुश होके भँवर बाँध लिये पावों में
रक़्स करने का मिला हुक्म उन को भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाशबूँद तक बो न सके जो दरियाओं में <br>हमने ख़ुश होके भँवर बाँध लिये पावों कभी सहराओं में <br><br>
उन को ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाश<br>थाके-हारे होबूँद तक बो धूप की तुम तो मिलावट सके जो कभी सहराओं करो चाओं में<br><br>
ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम जो भी थाके-हारे हो<br>आता है बताता है नया कोई इलाजधूप की तुम तो मिलावट बट करो चाओं जाये तेरा बीमार मसीहाओं में<br><br>
जो भी आता हौसला किसमें है बताता है नया कोई इलाज<br>युसुफ़ की ख़रीदारी का बट न जाये तेरा बीमार मसीहाओं अब तो महंगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में<br><br>
हौसला किसमें जिस बरहमन ने कहा है युसुफ़ की ख़रीदारी का <br>अब तो महंगाई के चर्चे ये साल अच्छा है ज़ुलैख़ाओं उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में <br><br>
जिस बरहमन ने कहा वो ख़ुदा है के ये साल अच्छा है <br>किसी टूटे हुए दिल में होगाउस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में <br><br>
वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल हम को आपस में होगा<br>मुहब्बत नहीं करने देतेमस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में <br><br>
हम को आपस में मुहब्बत नहीं करने देते<br>इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में <br><br> मुझसे करते हैं "क़तील" इस लिये कुछ लोग हसद <br>क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में <br><br/poem>
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