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|रचनाकार=ख़ुमार बाराबंकवी
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हुस्न जब मेहरबाँ हो तो क्या कीजिए
इश्क़ की मग़फ़िरत<ref>माफ़ी</ref> की दुआ कीजिए
अक्ल-ओ-दिल अपनी अपनी कहें जब 'खुमार'
अक्ल की सुनिए, दिल का कहा कीजिये
 
 
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