{{KKRachna
|रचनाकार=इरफ़ान सिद्दीकी
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होशियारी दिल-ए-नादान बहुत करता है
अब ज़बाँ खंज़र-ए-कातिल की सना करती है
हम वो ही करते है जो खल्त-ए-खुदा करती है
हूँ का आलम है गिराफ्तारों की आबादी में
हम तो सुनते थे की ज़ंज़ीर सदा करती है
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