|रचनाकार=श्रीकृष्ण सरल
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[[Category:गीत]]{{KKCatGeet}}
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अपने गीतों से गंध बिखेरूँ मैं कैसे
मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।
मैं लिखता हूँ मँझधार, भँवर, तूफान प्रबल
मैं नहीं कभी निश्चेष्ट किनारे लिखता हूँ।
अपने गीतों से गंध बिखेरूँ मैं कैसे<br>लिखता उनकी बात, रहे जो औघड़ हीमैं फूल जो जीवन–पथ पर लीक छोड़कर चले सदा,जो हाथ जोड़कर, झुककर डरकर नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।<br>चलेजो चले, शत्रु के दाँत तोड़कर चले सदा।मैं लिखता गायक हूँ मँझधारउन गर्म लहू वालों का हीजो भड़क उठें, भँवर, तूफान प्रबल<br>ऍसे अंगारे लिखता हूँ।मैं फूल नहीं कभी निश्चेष्ट किनारे काँटे अनियारे लिखता हूँ।<br><br>हूँ।।
मैं लिखता उनकी बात, रहे जो औघड़ ही<br>हाँ वे थे जिनके मेरु–दण्ड लोहे के थेजो जीवन–पथ पर लीक छोड़कर चले सदानहीं लचकते, नहीं कभी बल खाते थे,<br>जो हाथ जोड़कर, झुककर डरकर उनकी आँखों में स्वप्न प्यार के पले नहीं चले<br>जो चलेजब भी आते, शत्रु के दाँत तोड़कर चले सदा।<br>बलिदानी सपने आते थे।मैं गायक लिखता उनकी शौर्य–कथाएँ लिखता हूँ उन गर्म लहू वालों का ही<br>जो भड़क उठें, ऍसे अंगारे उनके तेवर के तेज दुधारे लिखता हूँ।<br>मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।<br><br>
हाँ वे थे जिनके मेरु–दण्ड लोहे के थे<br>जो नहीं लचकते, नहीं कभी बल खाते थे,<br>उनकी आँखों में स्वप्न प्यार के पले नहीं<br>जब भी आते, बलिदानी सपने आते थे।<br>मैं लिखता उनकी शौर्य–कथाएँ लिखता हूँ<br>उनके तेवर के तेज दुधारे लिखता हूँ।<br>मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।।<br><br> जो देश–धरा के लिए बहे, वह शोणित है<br>अन्यथा रगों में बहने वाला पानी है,<br>इतिहास पढ़े या लिखे, जवानी वह कैसे<br>इतिहास स्वयं बन जाए, वही जवानी है।<br>मैं बात न लिखता पानी के फव्वारों की<br>जब लिखता शोणित के फव्वारे लिखता हूँ।<br>मैं फूल नहीं काँटे अनियारे लिखता हूँ।<br><br>