|संग्रह=
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{{KKCatKavita}}<poem>'''एक: <br><br>'''
शाम है, मैं उदास हूँ शायद <br>अजनबी लोग अभी कुछ आयें <br>देखिए अनछुए हुए सम्पुट <br>कौन मोती सहेजकर लायें <br>कौन जाने कि लौटती बेला <br>कौन-से तार कहाँ छू जायें! <br><br>
बात कुछ और छेड़िए तब तक <br>हो दवा ताकि बेकली की भी <br>द्वार कुछ बन्द, कुछ खुला रखिए <br>ताकि आहट मिले गली की भी! <br><br>
देखिए आज कौन आता है <br>कौन-सी बात नयी कह जाये <br>या कि बाहर से लौट जाता है <br>देहरी पर निशान रह जाये <br>देखिए ये लहर डुबोये, या <br>सिर्फ़ तटरेख छू के बह जाये! <br><br>
कूल पर कुछ प्रवाल छूट जायें <br>या लहर सिर्फ़ फेनवाली हो <br>अधखिले फूल-सी विनत अंजुली <br>कौन जाने कि सिर्फ़ खाली हो? <br><br>
-- <br><br>'''दो:'''
दो: <br><br>वक़्त अब बीत गया बादल भी क्या उदास रंग ले आये देखिए कुछ हुई है आहट-सी कौन है? तुम? चलो भले आये!
वक़्त अब बीत गया बादल भी <br>अजनबी लौट चुके द्वारे से क्या उदास रंग ले दर्द फिर लौटकर चले आये <br>देखिए कुछ हुई क्या अजब है आहट-सी <br>पुकारिए जितना अजनबी कौन भला आता है एक है दर्द वही अपना है लौट हर बार चला आता है? तुम? चलो भले आये!<br><br>
अजनबी लौट चुके द्वारे से <br>अनखिले गीत सब उसी के हैं दर्द फिर लौटकर चले आये <br>क्या अजब अनकही बात भी उसी की है पुकारिए जितना <br>अजनबी कौन भला आता अनउगे दिन सब उसी के हैं अनहुई रात भी उसी की है <br>एक है दर्द वही अपना है <br>जीत पहले-पहल मिली थी जो लौट हर बार चला आता आखिरी मात भी उसी की है!<br><br>
अनखिले गीत सब उसी के हैं <br>अनकही बात भी उसी की है <br>अनउगे दिन सब उसी के हैं <br>अनहुई रात भी उसी की है <br>जीत पहले-पहल मिली थी जो <br>आखिरी मात भी उसी की है!<br><br> एक-सा स्वाद छोड़ जाती है <br>ज़िन्दगी तृप्त भी व प्यासी भी <br>लोग आये गये बराबर हैं <br>शाम गहरा गयी, उदासी भी! <br><br/poem>