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Kavita Kosh से
|रचनाकार=चंद्रसेन विराट
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अब हथेली न पसारी जाए.
धार पर्वत से उतारी जाए.
तोड़ दो हाथ दुशासनवाले
द्रौपदी अब न उघारी जाए..