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<poem>
हैं आशिक़ और माशूक जहाँ वां शाह<ref>बादशाह, शासक</ref> बज़ीरी<ref>मंत्री</ref> है बाबा ।
नै रोना है नै धोना है नै दर्द असीरी<ref>ऊँचा, तेज़</ref> है बाबा ।।
दिन-रात बहारें चुहलें हैं और इश्क़ सग़ीरी<ref>छोटा, थोड़ा</ref> है बाबा ।
जो आशिक़ हैं सो जानें हैं यह भेड फ़क़ीरी है बाबा ।।
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