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रिश्ते / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

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|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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<poem>
खुद कपड़े पहने
 
दूसरे को कपड़े पहने देखना
 
खुद कपड़े पहने
 
दूसरे को कपड़े न पहने देखना
 
खुद कपड़े न पहने
 
दूसरे को कपड़े न पहने देखना
 
तीन अलग- अलग रिश्ते बनाना है
 
इनमें से
 
पहले से तुम्हें मन बहलाना है
 
दूसरे को खोजने जाना है
 
तीसरे के साथ मिलकर
 
क्रान्ति और सृजन का परचम उठाना है।
   -- यह कविता [[deepak]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br><br/poem>
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