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कोई साथ नहीं देता है / मानोशी

1,547 bytes added, 19:14, 28 सितम्बर 2013
'<poem>कोई साथ नहीं देता है। जग झूठा है, तुम सच्चे हो, बिन...' के साथ नया पन्ना बनाया
<poem>कोई साथ नहीं देता है।

जग झूठा है, तुम सच्चे हो,
बिना डरे दिल की कहते हो,
अंतिम विजय सत्य की होती
यही मान सब कुछ सहते हो,
मगर, बावरे! समझ सको तो
एकल को कब संग मिला है?
बेबस हाथी के गिरने पर जंगल हाथ नहीं देता है।

तुम चाहो तो प्रेम कहो
पर दुनिया पाप-पुण्य आंकेगी,
जन्मसिद्ध अधिकार समझ कर
सुख-दुख, पल-पल में झांकेगी,
जब मांगा था साथ सभी का
तब कोई भी साथ नहीं था,
अब देखो एकांत मनाने जग-उन्माथ नहीं देता है।

जीवन कोई खेल नहीं है
कर्म-भाग्य का मिला जुला पथ,
जो तुमने ठाना है दिल में
डटे रहो जब माथ ली शपथ,
चाहे कोई संग न आये
अपना मन बस रहे साक्षी,
दुर्बल हो तो उसे शरण भी जग का नाथ नहीं देता है।

कोई साथ नहीं देता है।</poem>