|रचनाकार=किशोर कल्पनाकांत
|संग्रह=
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<Poem>
ओजूं एक चाणक्य
कूख मांय आग्यो है !
जापायत बणली अबकै
म्हारली भावना
आंगणै बाजसी सोवनथाळ
फेरूं कोई नीं कैय सकै
कुसमो-काळ !
मानखै रो स्वाभिमान गासी मंगळगीत
होवै लागी अबै परतीत !
ओजूं एक चन्द्रगुप्त जामैला !
स्वाभिमान नै टीयो दीखावणयां रो
माथो भांगैला !
ऊथळो मांगेला
चाणक्य रा नीत-मंत्र !
चन्द्रगुप्त रो भुजबळ मांगेला
आपरो तंत्र !
विजै-गीत गवैला चारण-भाट
उतर रैयो है
धरती उपरां एक आतमबळ विराट !
इतिहास दुसरावैला आपरी रीत
होवै लागी अबै परतीत !
अणतकाळ सूं रुपयोड़ी है
एक जंगी-राड़ !
पटकपछाड़
देव-दाना रै बीच कद रैयो सम्प
दिसावां मांय भरीजग्यो है कम्प !
जद-कद आडा आवै दधिची रा हाड़
स्याणा कथै क जड़ लेवो किंवाड़
राड़ आगै बाड़ चोखी
पण के ठा' ! कुण, किण रो है दोखी !
बरतीजै, जद बिरत्यां
गम ज्यावै सिमरत्यां
जणा भावना'र विवेक रै संजोग
मानखै रै गरभ पड़ै
बो एक जोग !
कांईं होवै लागी इसी परतीत ?बोल-बोल !मनगीत !
ओ अनुभव है जुगां री एक सांच
एकर ‘गीता’ नै बांच !‘रामायण’ नै गा !उण कथ सूं हेत लगा !जिको है बिरम रै उणियार !बो-ई धरै चाणक्य-चन्द्रगुप्त रो आकार !नांवसोक मन मांय चींत !दखां, किसीक होवै परतीत !
इयां कितराक दिन चालसी
पाखण्ड-तणो वंस ?छेवट, इण बजराक सूं मरियां सरसी कंस !
घणा दिन नीं रैयग्या है बाकी
चाल रैयी है काळ तणी चाकी
नौवों-म्हीनो लागग्यो है आज
नेड़ै-ई है जै अर जीत !होवै लागी परतीत !
मैं,
पीड़ रै साथै उछाव नै अनुभवूं !
मैं,
काळधणी नै माथो निंवू !
म्हारी पीड़
एक खुशी री पीड़ है
काळधणी री पगचाप
बगावत रो घमीड़ है !
साव दीसै ममता
जामण री खिमता
भविष्य रो एक सुपनो प्यारो
म्हारी आंख रो तारो
लाखूंलाख सुरजां सूं बेसी है !सांसां मांय बापरै !बो नीं है अबै आंतरै !बो-ई है म्हारो महागीत !बो-ई है सागण परतीत !***
</poem>