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देस री ओळूं मांय / मदन गोपाल लढ़ा
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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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Poem
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केसरिया बालम आवो नीं
पधारो म्हारै देस ...
गमायां पछै ई तो
उणरी करां चावना।
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Poem
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Sharda suman
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