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छोरी: दो / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा
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<Poempoem>   
छोरी रै मांयनै
चालतो रेवै एक जुध
जूझती रेवै सांच सूं
एक नूंवैं आभै री खोज में।
 </Poempoem>
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