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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=हरीश बी० शर्मा|संग्रह=}}{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>म्हारी जिनगाणी रे रोजनामचे में
थारी ओळूं
हिचकी बण'र उभरे
पण बता तो सरी
थूं कियां परोटे है म्हारे नांव री हिचकी
</poem>