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माखण / सत्यप्रकाश जोशी

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|रचनाकार=सत्यप्रकाश जोशी |संग्रह=राधा / सत्यप्रकाश जोशी
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<Poempoem>   
माखण री मटकी लियां
कद सूं उडीकूं रे कांन्ह !कद सूं झुरूं रे कांन्ह !
कद सूं अबोली बैठी
थारौ पंथ निहारूं ?
थूं डंडै, खोसै, लूट मचावै
पंथ-पंथ भटकणौ पड़सी
‘दही ल्यौ - दही ल्यौ’
पण कुण बतळावै-कुण पूछै बात ?
दही-दही री टेर लगातां
म्हारौ कंठ सूख जासी,
म्हारै धीरज रौ छेह आ जासी।
गूजरी रौ जीवण ई कोई जीवण है !इण खातर थनै उडीकूं रै कांन्ह !थारौ पंथ निहारूं रै कांन्ह !
आव रै नंदगांव रा गुवाळिया ! बेगौ आव,
माखण री मटकी लियां
ऊभोड़ी उडीकूं, बेगौ आव।
 </Poempoem>
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