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|रचनाकार=शिवराज भारतीय
|संग्रह=रंग-रंगीलो म्हारो देस / शिवराज भारतीय
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<poem>
जंगळ में भी खूब चढ़यौ है
अब किरकेट रो जोस
भाज-भाज नै रन बटोर्या
कर दिया वारा न्यारा।
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