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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=प्रेम व श्रृंगार रस की रचनाएँ / महेन्द्र मिश्र }}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatBhojpuriRachna}}
<poem> फूल तूड़े गइनीं राम राजा जी के बगिया
बनवारी हो मिली गइलें राजा के कुमार।
साँवली सुरतिया रामा मोहनी मुरतिया
बनवारी हो लागि गइलें नैना के कटार।
एक डर लागे मोहे सास ननद के
बनवारी हो सइयाँ मारी मूंगरी के मार।
तोहरी पिरीतिया रामा जिया से ना भूले
बनवारी हो चाहे जिउआ रहे चाहे जाय।
कहत महेन्दर मोरा जिया के लोभवलें बनवारी हो,
हंसी करे गँउआ जवार।
</poem>
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<poem> फूल तूड़े गइनीं राम राजा जी के बगिया
बनवारी हो मिली गइलें राजा के कुमार।
साँवली सुरतिया रामा मोहनी मुरतिया
बनवारी हो लागि गइलें नैना के कटार।
एक डर लागे मोहे सास ननद के
बनवारी हो सइयाँ मारी मूंगरी के मार।
तोहरी पिरीतिया रामा जिया से ना भूले
बनवारी हो चाहे जिउआ रहे चाहे जाय।
कहत महेन्दर मोरा जिया के लोभवलें बनवारी हो,
हंसी करे गँउआ जवार।
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