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|रचनाकार=श्यामनन्दन किशोर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>शुद्ध सोना क्यों बनाया, प्रभु, मुझे तुमने,<br>कुछ मिलावट चाहिए गलहार होने के लिए।<br><br>
जो मिला तुममें भला क्या<br>भिन्नता का स्वाद जाने,<br>जो नियम में बंध गया<br>वह क्या भला अपवाद जाने!<br><br>
जो रहा समकक्ष, करुणा की मिली कब छांह उसको<br>कुछ गिरावट चाहिए, उद्धार होने के लिए।<br><br>
जो अजन्मा है, उन्हें इस<br>इंद्रधनुषी विश्व से संबंध क्या!<br>जो न पीड़ा झेल पाये स्वयं,<br>दूसरों के लिए उनको द्वंद्व क्या!<br><br>
एक स्रष्टा शून्य को श्रृंगार सकता है<br>मोह कुछ तो चाहिए, साकार होने के लिए!<br><br>
क्या निदाघ नहीं प्रलासी बादलों से<br>खींच सावन धार लाता है!<br>निर्झरों के पत्थरों पर गीत लिक्खे<br>क्या नहीं फेनिल, मधुर संघर्ष गाता है!<br><br>
है अभाव जहाँ, वहीं है भाव दुर्लभ -<br>कुछ विकर्षण चाहिए ही, प्यार होने के लिए!<br><br>
वाद्य यंत्र न दृष्टि पथ, पर हो,<br>मधुर झंकार लगती और भी!<br>विरह के मधुवन सरीखे दीखते<br>हैं क्षणिक सहवास वाले ठौर भी!<br><br>
साथ रहने पर नहीं होती सही पहचान!<br>चाहिए दूरी तनिक, अधिकार होने के लिए!<br><br/poem>
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