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<poem>मुहब्बत जान लेती है बचा लो जिसका दिल चाहे।
मिले ना या वो हमसे मिला दे जिसका दिल चाहे।

तड़पते हें न मरते हें उन्हीं को याद करते हैं,
पड़ा हूँ नीमजाँ दर पे उठा दे जिसका दिल चाहे।

उन्हें तो चैन करना है हमें बेमौत मरना है,
जनाजा ऐसी हालत को उठा दे जिसका दिल चाहे।

हुवे बदनाम लाखों में हजारों गलियाँ खाई,
जरा वो यार का सूरत देखा दे जिसका दिल चाहे।

महेन्दर क्या करूँ अब तो मिले ना बाँसुरी वाले,
ये प्याला है मुहब्बत का पिला दे जिसका दिल चाहे।

</poem>
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