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मरी मुहब्बत / हरकीरत हकीर

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(इमरोज़ के लिए )

मैं कभी …
आईने के सामने नहीं खड़ी होती
वहाँ कभी 'हीर' दिखती ही नहीं
वहाँ तो 'हक़ीर' दिखती है .
तूने मुझे हक़ीर से हीर बना तो दिया
पर मैं अपने अन्दर की
मरी हुई मुहब्बत
कभी जगा न सकी ….
</poem>
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