भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हकीर }} {{KKCatNazm}} <poem>मुहब्बत की ...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>मुहब्बत की बातें
बड़ी अच्छी लगतीं हैं
जैसे तुम्हारा बादल बन बरस जाना
और खाली होकर भी खाली न होना
जैसे मेरा भीग कर भी
न भीगना …

तुम्हें पता है … ?
कल जब मैंने तुम्हें
पत्तियों पर ख़त लिखा
ठंडी हवा का झोंका बारिश की
छोटी - छोटी कणिकाओं के साथ
मुझे छू कर निकल गया …

अचानक ही मुझे
तुम्हारा ख्याल आया
जैसे तुम बादल बनकर मेरे साथ
चले जा रहे हो, और …
मैं तुझे छूने लगूं
तो तुम रंग बन जाओ
मुहब्बत का रंग …
और हम दोनों जन खूब भीगें
कविता के उगने तक
दरख़्तों के गले लग
घरौंदों के गीत सुने
मीठे - मीठे सरोद में
रूह तक भीग जायें …

सच ! मुहब्बत की बातें
अँधेरी सतरों पर भी
रौशनी डाल देती हैं …
जैसे आंसुओं के पाक मोती
कोई सिप्पी से निकाल
होठों को छुआ ले …
जैसे टुकड़े टुकड़े हुई
होंद के टुकड़े समेट कर कोई
ज़ज्बातों का रंग उकेर दे ….

जैसे तेरा खाली होकर भी
खाली न होना …
जैसे मेरा भीग कर भी
न भीगना …
जैसे मुहब्बत का
न होकर भी होना …
सच ! मुहब्बत की बातें
कितनी अच्छी लगती हैं ….
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
2,357
edits