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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">भाषा की लहरेंखुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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<poemdiv style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">भाषाओं खुले तुम्हारे लिए हृदय के अगम समुद्रों का अवगाहनद्वारमैंने किया। मुझे मानव–जीवन की मायासदा मुग्ध करती है, अहोरात्र आवाहनअपरिचित पास आओ
सुन सुनकर धाया–धूपा, मन आँखों में भर लायासशंक जिज्ञासाध्यान एक से एक अनोखे। सबकुछ पायामिक्ति कहाँ, है अभी कुहासाशब्दों मेंजहाँ खड़े हैं, देखा सबकुछ ध्वनि–रूप हो गया ।पाँव जड़े हैंमेघों ने आकाश घेरकर जी भर गाया।स्तम्भ शेष भय की परिभाषामुद्राहिलो-मिलो फिर एक डाल केखिलो फूल-से, चेष्टा, भाव, वेग, तत्काल खो गया,जीवन की शैय्या पर आकर मरण सो गया।मत अलगाओ
सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ भाषा ।भाषा सबमें अपनेपन की अंजुली से मानव हृदय टो गयामायाकवि मानव का, जगा नया नूतन अभिलाषा । भाषा की लहरों अपने पन में जीवन की हलचल है,ध्वनि में क्रिया भरी है और क्रिया में बल है आया </poemdiv>
</div></div>