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Kavita Kosh से
गँवाओ न गौरव नए भाव भर दो,
हुई जाति बेपर है तुम इसको पर दो ।।
असहयोग कर दो ।
असहयोग कर दो ।।
मानते हो घर-घर ख़िलाफ़त का मातम,
अभी दिल में ताज़ा है पंजाब का ग़म ।
तुम्हें देखता है ख़ुदा और आलम,
यही ऐसे ज़ख़्मों का है एक मरहम
असहयोग कर दो ।
असहयोग कर दो ।।
किसी से तुम्हारी जो पटती नहीं है,
उधर नींद उसकी उचटती नहीं है ।
अहम्मन्यता उसकी घटती नहीं है,
रुदन सुन के भी छाती फटती नहीं है ।
असहयोग कर दो ।
असहयोग कर दो ।।
बड़े नाज़ों से जिनको माँओं ने पाला,
बनाए गए मौत के वे निवाला ।
नहीं याद क्या बाग़े जलियाँवाला,
गए भूल क्या दाग़े जलियाँवाला ।
असहयोग कर दो ।
असहयोग कर दो ।।
ग़ुलामी में क्यों वक़्त तुम खो रहे हो,
ज़माना जगा, हाय, तुम सो रहे हो ।
कभी क्या थे, पर आज क्या हो रहे हो,
वही बेल हर बार क्यों बो रहे हो ?
असहयोग कर दो ।
असहयोग कर दो ।।