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{{KKRachna
|रचनाकार=कृष्णा सिन्हा
|संग्रह=मंडाण/ नीरज दइया
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poem>घणी छोटी हूं, माटी हूं म्हैं
जे राखोला थे पग म्हा पर
जद ई चरण धूळ ही थांकी हूं म्हंैम्हैं
घणी छोटी हूं....।
हवा ई जद ना चालै उण समै,
तो माटी में अस्यान धंस जाऊंला म्हंैम्हैं
बण थांकां पगां रा निसाण
सगळां नैं थांको गेलो ही दिखाऊंला म्हैं
घणी छोटी हूं....।</poem>
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