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|रचनाकार=किशोर कुमार निर्वाण
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita‎}}<poem>काटतो जावै मिनख
आज आपरी ई जड़ां नैं
उळझतो जावै
आपरै ई बुण्योड़ै जाळ मांय।

अबार रिस्ता-नाता
रैयग्या फगत मतलब सारू
मेळ-मुलाकात अर हेत
रैयौ ई कठै?

बणग्यो मिनख इब तो मसीन
भूलग्यो अपणायत
थोथी हुयगी है
सैंग मानतावां

म्हारै मन मांय है
फगत एक सवाल-
‘मिनख’ कद बणसी ‘मिनख’
पण
कुण देवै म्हनैं पडूत्तर।</poem>
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