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Kavita Kosh से
तू है गगन विस्तीर्ण तो मैं एक तारा क्षुद्र हूँ,
तू है महासागर अगम मैं एक धारा क्षुद्र हूँ ।
तू है महानद तुल्य तो मैं एक बूँड बूँद समान हूँ,
तू है मनोहर गीत तो मैं एक उसकी तान हूँ ।।