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06:18, 25 जनवरी 2014 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रमेश 'कँवल'
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<poem>
जब भी मैं उससे मिलने की लेकर दुआ गया
वह मेरा मुंतज़िर1 थाल बे-बाम आ गया
जब तक था आसमान पे रहबर2 की तरह था
टूटा तो फिर ख़ला3 में बिखरता चला गया
बेज़ार4 क्यों न हो कोर्इ दुनिया के दर्द से
क्या कोर्इ ग़म के दश्त5 में खुशियां खिला गया
दामन तेरे़ खयाल ने छोड़ा न एक पल
घबरा के ज़िन्दगी से मैं दामन छुड़ा गया
गुंचा दहन तो और भी शादाब6 हो गये
तुझ को रूला के कौन हसीं गुल खिला गया।
सूरत तेरी अज़ीज़7 थी जाड़े की धूप सी
सूरज था तू भी जल्द ही पच्छम दिशा गया
पिछले पहर किसी की वो आवाज़े-पा8 'कंवल’
मंदिर में दिल के कौन ये हलचल मचा गया
1. प्रतीक्षारत,आशान्वित 2. मार्गदर्शक 3. रिक्तस्थान, अंतरिक्ष
4. विकल-दुखी 5. अरण्य-वन 6. हरा-भरा 7. प्रियस्वजन, 8. पदचाप।
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