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<poem>जैसे ईश्‍वर
नि‍हारता है धरती को
फि‍र करता है उर्वर परती को
वह रचता है एक कि‍सान में मेहनत का जज्‍बा
और भेज देता है गौएँ चरने के लि‍ए
पूरी फ़सल चाट कर
गौमाताएँ करती हैं जुगाली

फि‍र वही जज्‍बा
काम करता है
फि‍र जोतता है खेत, कि‍सान
गौमाताओं की संतानों को फाँदकर
कोचकता है तुतारी उनके पुष्‍ट पुट्ठों पर
अपना पुश्‍तैनी गुस्‍सा नि‍कालते हुए

मुसकराता है ईश्‍वर
अपनी रचनात्‍मक ज़िद पर
और रचता है फि‍र
-2001ई0
</poem>