भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
पूरा करती है सफ़र
सिफ़ारिशों की रहनुमाई में
फिर कोई सिकंदर हो जाता है। है ।
फ़तह होती नहीं
मगर क़ाबिज़ हो जाता है बहुत कुछ
कानाफूसी करती हुई हवाएँ
पूरज़ोर ताक़त जुटाते हुए
तबदील हो जाती है वारदातों में। में ।
वक़्त को एक नई तहरीर मिल जाती है
सुना है
मसीहाई को ख़तरा है। है ।
फ़ेहरिस्त में फ़रिश्तों का नाम नहीं,
शर्मनाक दौर से गुज़रने वाले
हर नकाबपोश चेहरे का इश्तहार है
नीहत वाहियात स्कीमों को इजाद करनेवालों का
इनामी ख़ुलासा है। है ।
देखा नहीं जाता उन तारों को
याद की जाती है झनकार
जिनसे पैदा होता है लाफ़ानी संगीत। संगीत ।
चाहे उलझकर
लहूलुहान हो गई हो उँगलियाँ
बढती हुई शिकायतों के शोर में
दमकल
आग का पता लगाते-लगाते गुम हो जाते हैं।हैं ।
कुछ तो आग जला देती है
और
जुट जाते हैं लोग
अपने लिए - दूसरों के लिए
या ...सबके लिए!
1994-'95 ई0 </poem>