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<poem>
हो गये सावन गीत मेरे ज़ख़्मी, घायल अरमान
मुझे कहते हैं सब नादान

हंसते हैं सब प्रीत पे तेरे कसते हैं मुझ पे ताने
वक़्त के हाथों आज नुमायश बन गये प्रेम के अफ़्साने
खतरे में है तेरी वफ़ा, मेरे दिल के मेहमान
मुझे कहते हैं सब नादान

तोड़ लिया क्यों ख़त-ओ-किताब रूठ गर्इ तुम क्यों सावन
दुश्मन दुनिया, बेबस मैं, सिसके यौवन, सुलगे तन मन
जनम जनम के मीत मेरे मत डोर आस की तान
मुझे कहते हैं सब नादान

प्रीत का दरपन उलझ पड़ा है फ़र्ज़ के पत्थर से इस बार
तू ही बता महबूब मेरे अब कैसे प्रीत करे सिंगार
ज़ख़्मों के जंगल में खो गये खुशियों के तूफ़ान
मुझे कहते हैं सब नादान

इश्क़ ख़ुदा है, प्रेम है र्इश्वर, कहते हैं दुनिया वाले
नफ़रत क्यों, रूसवार्इ क्यों, क्यों मेरे नसीब में हैं नाले
क्यों है गुरेजां कोर्इ बतायें उल्फ़त से इन्सान
मुझे कहते हैं सब नादान

हो गये सावन गीत मेरे ज़ख़्मी घायल अरमान
मुझे कहते हैं सब नादान
</poem>
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