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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी }} {{KKCatGhazal}} <poem> तमाम...' के साथ नया पन्ना बनाया
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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
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<poem>
तमाम ख़ुश्क दयारों को आब देता था
हमारा दिल भी कभी आसमान जैसा था


अजीब लगती है मेहनतकशों की बदहाली
यहाँ तलक तो मुक़द्दर को हार जाना था


नये सफ़र का हरिक मोड़ भी नया था, मगर
हरेक मोड़ पे कोई सदाएँ देता था


बग़ैर पूछे मेरे सर में भर दिया मज़हब
मैं रोकता भी तो कैसे कि मैं तो बच्चा था


कोई भी शक़्ल उभरना मुहाल था यारो
हमारे साये के ऊपर शजर का साया था


तमाम उम्र ख़ुद अपने पे जुल्म ढाते रहे
मुहब्बतों का असर था कि कोई नश्शा था


बड़ा सुकून मिला उस से बात कर के हमें
वो शख़्स जैसे किसी झील का किनारा था


बस एक वार में दुनिया ने कर दिये टुकड़े
मेरी तरह से मेरा इश्क़ भी निहत्था था


अलावा इस के मुझे और कुछ मलाल नहीं
वो मान जायेगा इस बात का भरोसा था</poem>
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