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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना }} {{KKCatGhazal}} <poem>मेरे...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>मेरे हांथो में लहू देखकर कातिल मत समझना,
मैंने अपने दिल को हांथों से सहलाया भर है !
रंज-ओ-गम के इस माहौल से गमगीन था बहुत ,
बदलेगा ये भी वक्त, इसे बस समझाया भर है !
मत भटक तू इंसानों की खोज में इस जमीं पर,
एक खूबसूरत धोखा है ये दुनिया, बताया भर है !
परेशां है तू अपने मुकद्दर से जब इस कदर,
अभी तो अपनी मोहब्बत को जताया भर है !
किस -किस को जाहिर करेगा अपने जख्मों को,
सभी ने लहू के अश्कों से तुझको रुलाया भर है!
मेरे हांथो में लहू देखकर कातिल मत समझना,
मैंने अपने दिल को हांथों से सहलाया भर है !
</poem>
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|रचनाकार=धीरेन्द्र अस्थाना
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<poem>मेरे हांथो में लहू देखकर कातिल मत समझना,
मैंने अपने दिल को हांथों से सहलाया भर है !
रंज-ओ-गम के इस माहौल से गमगीन था बहुत ,
बदलेगा ये भी वक्त, इसे बस समझाया भर है !
मत भटक तू इंसानों की खोज में इस जमीं पर,
एक खूबसूरत धोखा है ये दुनिया, बताया भर है !
परेशां है तू अपने मुकद्दर से जब इस कदर,
अभी तो अपनी मोहब्बत को जताया भर है !
किस -किस को जाहिर करेगा अपने जख्मों को,
सभी ने लहू के अश्कों से तुझको रुलाया भर है!
मेरे हांथो में लहू देखकर कातिल मत समझना,
मैंने अपने दिल को हांथों से सहलाया भर है !
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