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<poem>उम्र भर का गम उठाने की बात करते थे वो कभी ,
दौर-ए-गम शुरू हुआ नही , दामन छुड़ा के चल दिए !


अक्सर मेरे काँधे पे होता था उनका सर और,
जब जरूरत हुयी उनकी , बातें बना के चल दिए !


कभी मेरा तो कभी गैरों का शिकवा करते वो ,
मेरे हाल की कौन सुने , अपने सुना के चल दिए !
</poem>
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