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<poem>बाद बिछुड़ने के हुआ मालूम ,
वो मेरे कितने करीब थे !

था मै नाचीज़ उनके लिए पर,
मेरे लिए वो नसीब थे !

गैरो में गिनता था खुद को ,
पाया तो वो बड़े अज़ीज़ थे !

थी जो दिले - जागीर पास मेरे ,
लूटे तो सबसे गरीब थे !

बाद बिछुड़ने के हुआ मालूम ,
वो मेरे कितने करीब थे !
</poem>
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