भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
भूल गया है तू अपना पथ,
और नहीं पंखों में भी गति,
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर ।बदतर।खग ! उडते रहना जीवन भर !
मत डर प्रलय झकोरों से तू,
बढ आशा हलकोरों से तू,
क्षण में यह अरि-दल मिट जायेगा तेरे पंखों से पिस कर ।कर।खग ! उडते रहना जीवन भर !
यदि तू लौट पडेगा थक कर,
अंधड काल बवंडर से डर,
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझ को हँस-हँस कर ।कर।खग ! उडते रहना जीवन भर !
और मिट गया चलते चलते,
मंजिल पथ तय करते करते,
तेरी खाक चढाएगा जग उन्नत भाल और आखों पर ।पर।खग ! उडते रहना जीवन भर !
</poem>