|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
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{{KKCatKavita}}<poem>तब मानव कवि बन जाता है !<br>जब उसको संसार रुलाता,<br>वह अपनों के समीप जाता,<br>पर जब वे भी ठुकरा देते<br>वह निज मन के सम्मुख आता,<br>पर उसकी दुर्बलता पर जब मन भी उसका मुस्काता है !<br>तब मानव कवि बन जाता है !<br/poem>