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06:42, 5 मार्च 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
|अनुवादक=
|संग्रह=गीत जो गाए नहीं / गोपालदास "नीरज"
}}
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<poem>
उसकी प्यास प्रबल कितनी थी?
सम्मुख पाकर
मधु, विष के लहराते सागर
मधु पर झुककर भी
लेकिन कुछ
सोच, समझ कर;
प्यासी दृष्टि डाल उस पर जो केवल विष पी पाया!
उसकी प्यास प्रबल कितनी थी?
</poem>