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|रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर
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<poem>नीत्‍शे !
तुम्‍हारा ईश्‍वर मरा नहीं होगा
नहीं मरा होगा
हालाँकि
तुम्‍हारी घोषणा सही थी ।


तुम्‍हारा ईश्‍वर बना होगा अनास्‍था से ।



वि‍जेता कहने भर के लि‍ए
या, कि‍सी अज्ञात भय से
सुमर लेता है, लेकि‍न
परास्‍त लोगो का ईश्‍वर
बडा शक्‍ति‍शाली होता है ।
पराजि‍तों की आशा
- वि‍श्‍वास
आसक्‍ति‍ और, या आस्‍था
सशक्‍त होती है
'गहरे ताल-सी गहराई'


नीत्‍शे !
तुमने अपनी बात सतर्क-सटीक की होगी
तर्क और टीका
अवांतर फैली
क्षि‍ति‍ज के वि‍स्‍तार-सी
वि‍स्‍तीर्ण
- 2000 ई0</poem>