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आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार।
खिलाती थी मधुर आशा
पर नियति का क्या तमाशा-
पार लेने चला था, पर हाँ ! मिली मँझधार।
आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार।
और यह तूफ़ान क्षण में ही बनेगा छार।
माँझी, छोड़ मत पतवार!
 
 
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