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छोड़ दी पतवार / गोपालदास "नीरज"
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16:58, 5 मार्च 2014
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<poem>
आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार।
खिलाती थी मधुर आशा
पर नियति का क्या तमाशा-
पार लेने चला था, पर हाँ ! मिली मँझधार।
आज माँझी ने विवश हो छोड़ दी पतवार।
और यह तूफ़ान क्षण में ही बनेगा छार।
माँझी, छोड़ मत पतवार!
</poem>
Sharda suman
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