भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गान समझता / गोपालदास "नीरज"

1,205 bytes added, 07:58, 7 मार्च 2014
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपालदास "नीरज" |अनुवादक= |संग्रह=ग...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
|अनुवादक=
|संग्रह=गीत जो गाए नहीं / गोपालदास "नीरज"
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
मैं रोदन ही गान समझता!

उर-पीड़ा के अभिशापित दल
जो नयनों में रहते प्रतिपल-
आँसू के दो-चार क्षार कण, आज इन्हें वरदान समझता।
मैं रोदन ही गान समझता!

दुर्बल मन का अलस भाव जो-
अपने से अपना दुराव जो-
निज को ही विस्मृत कर देना आज श्रेष्ठतम ज्ञान समझता।
मैं रोदन ही गान समझता!

अपनी ये कितनी लघुता है
अपनी कितनी परवशता है-
कल जिसको पाषाण कहा था आज उसे भगवान समझता।
मैं रोदन ही गान समझता!
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
1,983
edits