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09:38, 16 मार्च 2014 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरे प्रकाश उपाध्याय
|अनुवादक=
|संग्रह=खिलाड़ी दोस्त और अन्य कविताएँ / हरे प्रकाश उपाध्याय
}}
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<poem>
ना-राज में राज का निषेध है
फिर भी
आप तो ऐसे नाराज होते हो
जैसे राज की कोई बात हो
क्या आप किसी पर नाराज होते हुए
कभी सोचते हैं
कि आप उस पर राज नहीं कर रहे?
नाराज के आगे कोई ना कर दे
तो नानाराज हो जाता है
क्या आपने कभी इस तरह सोचा है
आपने इस तरह नहीं सोचा है तो...
फिर नाराज के बारे में आपने क्या सोचा है?
मेरा बच्चा नाराज के पहले
हमेशा 'का' जोड़ देता है और हँसता रहता है
देर तक...।
</poem>