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अछूते फूल / हरिऔध

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|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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|संग्रह=चोखे चौपदे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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<poem>
फूल में कीट, चाँद में धाब्बे।

आग में धूम, दीप में काजल।

मैल जल में, मलीनता मन में।

देख किस का गया नहीं दिल मल।

है बुरा, घास-फूस-वाला घर।

मल भरा तन, गरल भरा प्याला।

रिस भरी आँख, सर भरा सौदा।

मन भरा मैल, दिल कसर वाला।

है कहाँ गोद तो भरी पूरी।

जो सकी गोद में न लाल सुला।

क्या मिला पूत जो सपूत नहीं।

क्या खुली कोख जो न भाग खुला।

क्या रहा ताल तब भरा जल से।

जब कि उस में रहा कमल न खिला।

क्या फली डाल जो सुफल न फली।

क्या खुली कोख जो न लाल मिला।

पुल सकेगा न बँधा सितारों पर।

वु+ल धारा धूल ढुल नहीं सकती।

धुल सकेंगे न चाँद के धाब्बे।

बाँझ की कोख खुल नहीं सकती।

जब नहीं उस ने बुझाई भूख तो।

मोतियों से क्या भरी थाली रही।

जो न उस के फल किसी को मिलसके।

तो फलों से क्या लदी डाली रही।

जोत वै+से मलीन होवेगी।

क्या हुआ भूमि पर अगर पै+ली।

धूल से भर कभी न धूप सकी।

हो सकी चाँदनी नहीं मैली।

आम में आ सका न कड़वापन।

है मिठाई न नीम में आती।

छोड़ ऊँचा सका न ऊँचापन।

नीच की नीचता नहीं जाती।
</poem>
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